- गीत - सुमिरन करौ सतनाम के
- स्वर - कांतिकार्तिक यादव
- गीतकार - धनेन्द्र भारती
- संगीतकार - ओ.पी. देवांगन
- लेबल - कोक क्रिएशन
स्थायी
सत के निशानी अधर लहराए
सत के निशानी अधर लहराए
सादा रंग झंडा जैतखाम के
मैं तो सुमिरन करौ सतनाम के
माला जपौ गुरू नाम के
मैं तो सुमिरन करौ सतनाम के
माला जपौ गुरू नाम के
सत के निशानी अधर लहराए
सत के निशानी अधर लहराए
सादा रंग झंडा जैतखाम के
मैं तो सुमिरन करौ सतनाम के
माला जपौ गुरू नाम के
मैं तो सुमिरन करौ सतनाम के
माला जपौ गुरू नाम के
अंतरा 1
सत के हे दीयना सत के हे बाती
सुमिरत हे हंसा दिन अऊ राती
सत के अंजोर ह दुनिया म छागे
सत के मनौती म जिनगी ला पा गे
सत के रद्दा देखाए तैं बाबा
सत के रद्दा देखाए गुरू बाबा
महिमा जब तोर नाम के
अंतरा 2
मनखे ले मनखे ले भेद मेटाए
सत के रद्दा म चल के देखाए
सत के खातिर तन ल तपाए
धन हे ये माटी जिहा जनम तैं पाए
माथ म चंदन तिलक लगावौ
आठो पहर मैं शिश नवावौ
माटी ल गिरौदपुरी धाम के
अंतरा 3
कंठ जतेउ संग पान सुपारी
आस लगाए तोर खड़े हौ दुवारी
दर्शन देदे मोला गुरू मोर
सत के रद्दा के मैं हौं पुजारी
कांतिकार्तिक नाम गोहारे
धनेन्द्र भारती नाम गोहारे
तोर बिन ये चोला का काम के
सत के निशानी अधर लहराए
सत के निशानी अधर लहराए
सादा रंग झंडा जैतखाम के
मैं तो सुमिरन करौं सतनाम के
माला जपौ गुरूनाम के
मैं तो सुमिरन करौं सतनाम के
माला जपौ गुरूनाम के