- गीत : धन धन हे विधाता
- गायक : दुकालू यादव
- गीतकार : दुकालू यादव
- संगीतकार : दुकालू यादव
- लेबल : केके कैसेट
अजब गजब तोर रूप विधाता
सगरो चराचर रच डारे
आगी रचे तैं पानी रचे तैं
पवन घलो तैं रच डारे
जीव जंतु मानुष ल रचे तैं
देव धामी घलो रच डारे
सबके गढ़ईया तैं हा विधाता
कोन पाही तोरेच पारे
कोन पाही तोरेच पारे
कोन पाही तोरेच पारे
स्थायी
धन धन हे विधाता तोर करना
हो तोर करना
यहो अजब रचे तैं जग रचना
हो जग रचना
अंतरा 1
तोर रचे संसार विधाता
अगनी पवन अऊ पानी
तीनो ला तिहि उपजाऐ
तभी चलत हे जिनगानी
तोर हाथ में सब के जीना मरना
जीना मरना
यहो अजब रचे तैं जग रचना
हो जग रचना
अंतरा 2
जगत के तैं रखवार विधाता
करथे तोर कोन रखवारी
तीन लोक तैंतीस कोटी देवता
दानव मानव तोर पुजारी
सबो बंधे हे तोर मया के बंधना
ऐ मया के बंधना
यहो अजब रचे तैं जग रचना
हो जग रचना
अंतरा 3
सतजुग द्वापर त्रेता कलयुग
चारो जुग मा तैं हा आये
धरती आगास तोर छंईहा भुईहा
फेर कहा तैं समाये
तोला देखे बर तरसे प्रेम के नैना
प्रेम के नैना
यहो अजब रचे तैं जग रचना
हो जग रचना
यहो अजब रचे तैं जग रचना
हो जग रचना
धन धन हे विधाता तोर करना
हो तोर करना